நான் கடலின் ஒரு துளி அல்ல; ஒரு துளியின் ஒட்டுமொத்தக் கடல் - ரூமி

சனி, 9 டிசம்பர், 2023

हमारे रसोई घर में - तमिल भारतन | एक लाख रुपये का इनाम कहानी

हमारे रसोई घर में

तमिल में: त.क. तमिल भारतन                   

हिन्दी में: अलमेलु कृष्णन, चेन्नई  

कुछ घंटे ही बचे थेजल्दी जल्दी मुरुकन ने अपनी माँ को फोन किया। मुश्किल के वक्तों में उसी से सलाह ली जाती है जिसने इस दुनिया की पहचान दिलाई चार-पाँच बार फोन करने पर भी माँ ने फोन नहीं उठाया आखिरी बार फोन करने की कोशिश करके देखूँ । ले तो ठीकन ले  तो... ऐसा नहीं होगा ,वह जरूर लेगी । ऐसे सोचते ही रहा कि मोबाइल से 'वांछित सब कुछ....’ की ध्वनि निकली |

"अभी समाचार देखा आधी रात से कर्फ्यू लागू हो जाएगा तुमने कहा था कि हॉस्टल खाली करके आ रहे हो? अब कहाँ हो ?"

हेलोमाँयहाँ बहुत भीड़ है | कोई ट्रेन नहीं है | कारवाले कार चलाना नहीं चाहते | बस से ही आना पडेगा। इस भीड़ में आने से न आना ही अच्छा होगा लेकिन चेन्नई में कहाँ ठहरूँ? कोई भी अपने घर के अंदर आने न देगाकुछ समझ में नहीं आता। तुम्हीं कोई सुझाव दो न |

परामर्श विभाग में सेवा करने वाले मुरुकन को परामर्श देती हैं उसकी माँ |

अगर तुम गुस्सा नहीं करते तो मैं तुमसे एक बात बताऊँ |"

क्या वल्लि के घर जाना हैआगे बोलना ही नहीं बस ...फोन रख दो |”

लोगों की बहुलता से खचाखच भरा कोयंपेड बस अड्डातांबरम निगम पार करने से इनकार करती मोटर गाड़ियाँस्टेशन पर ही सोने वाली रेलगाड़ियाँ इसप्रकार जीवन की सहजता को ही पलट दी थी कोरोना ने सरकार द्वारा 48 दिनों तक 144 निषेधाज्ञा लागू रहने की घोषणा होते हीकिराए के आवास के वाट्स अप ग्रूप में प्रबंधक ने एक संदेश पोस्ट किया। " खाना बनाने के लिए कोई नहीं आएगाकोई रेस्टोरेंट भी नहीं होंगे " | इसे देखते ही मुरुकन कमरा खाली करके अपने गाँव के लिए रवाना हुआ कर्फ्यू के कारण शाम तक ऑटो या टैक्सी नहीं चल रही थीं हास्टल के द्वार पर खड़े होकर आन लाइन अपडेट करते करते उसके मन में यह डर पैदा हुआ कि कोयंपेड जाने से कोरोना संक्रमित हो सकता है |

रिश्तेदार के घर जा सकता है लेकिन ऐसा कोई नजदीकी रिश्तेदार तो नहीं कि उसे अड़तालीस दिन बिठाकर खाना खिलाए दोस्तों के साथ रह सकता है एक ही दोस्त जो अब तक अकेला था वह भी पिछले महीने शादी शुदा होकर दुकेला बन गया अपने कारण किसीको परेशानी का अनुभव न हो इस विचार से मुरुकन ने किसी को परेशान नहीं किया यह झुंझलाहट अलग है कि माँ भी बिना सोचे समझे वल्लि के घर पर रहने की सलाह देती है 

स्वयं की निंदा करते हुए अरुणोदय हो रहे पूर्वी दिशा की ओर चलने लगा वल्लि का घर पूर्वी दिशा में स्थित नहीं था |  इधर उधर कुत्तोंआँखें घुमाते उल्लुओं और घोंसलों में समाहित पक्षियों के अलावा तारों की दृष्टि से भी होते हुए वह चलता रहा,चलता रहा,चलता ही रहा अस्थिर संसार में प्रकृति दबाती है आत्मरक्षा के लिए भागकर छिपना पड़ता है इस वास्तविकता ने जीवन के प्रति निराशावाद को जन्म देता है |

यह एक अप्रत्याशित समय था सबेरे का समय था  मोबाईल  बजने लगा शाम सुलगती है जब भी तेरा खयाल आता हैसूनी सी गोरी बाहों में धुंआ सा भर जाता है “ इन पंक्तियों को सुनाने के बाद कॉल बंद हो गई वल्लि बुला रही थी लगभग दो महीने बाद मुरुकन ये पंक्तियाँ सुन रहा है इन पंक्तियों ने उसकी स्मृतियों को झकझोर दिया |

फिर से आ जा रे परदेसीमैं तो कब से खडी इस पारये अँखियाँ थक गयीं पंथ निहारआ जा रे परदेसी “ की पंक्तियाँ बज उठीं तो उसने निमंत्रण स्वीकार कर लिया बोला तो कुछ नहीं |

मुझे मालूम है कि तुम मुझसे नहीं बोलोगेबोलने की जरूरत भी नहीं रात को माताजी बोली थी कहा कि गुस्से में तुमने फोन बंद कर दिया आधीरात के समय चेन्नई में यहीं कहीं खड़े होगे लोकेशन भेजो मैं आकर ले जाती हूँ |

जवाब की प्रतीक्षा किए बिना वल्लि ने फोन रख दिया जब तक उसने लोकेशन भेजीतब तक वह कार लेने के लिए अपार्टमेंट ब्लॉक के बेसमेंट तक आ गई थी जैसे ही लोकेशन देखा तो उसे आश्चर्य हुआ कि मुरुकन उसके घर के ठीक सामने था वल्लि ने उसे पुकारापर मुरुकन हिला ही नहीं फिर से बुलाने पर भी कोई फ़ायदा नहीं हुआ अंत में उसे लेकर लिफ्ट से अठारहवीं मंजिल पहुँची 

प्रतिभाशाली और साधन संपन्न महिला वल्लि कंप्यूटर साइंस विभाग में सॉफ्टवेयर इंजीनियर है उसका मासिक वेतन चार लाख से अधिक है इसे सोलह कैसे बनाया जाए इसका पता लगाना ही उसका लक्ष्य है या तो उसके माता-पिता नहीं हैं नहीं तो अलग हो गए होंगे वल्लि भी माता-पिता के न होने की अवस्था को ही पसंद करती है स्कूल से कॉलेज तक वह हॉस्टल में ही रही और नौकरी लगने के बाद भी पेइंग गेस्ट के रूप में ही रही मासिक आय एक लाख पार करते ही ईएमआई पर 18वीं मंजिल पर का यह मकान खरीद लिया इसे घर कहने के बजाय विश्राम स्थल कहा जा सकता है वल्लि को यही पसंद है पंख फैलाओउडते रहो ’ कथन के मुताबिक वह समाज में उड़ते रहनेवाली है उसका विचार था कि केवल उडान की सफलता ही उसके जीवन के खालीपन की भरपाई कर सकती है उसके मतानुसार सफलता में ही खुशी है |

पच्चीस साल की आयु पार होने के पहले अपनी आत्मा और शरीर के लिए समुचित एक व्यक्ति को पहचाना वह व्यक्ति था मुरुकन मुरुकन तो छोटे से शहर से निकलकर चेन्नई पहुँचा था माताजी के परिश्रम से पला था वह अभी अभी लाखों में कमाने लगा था दोनों एक ही दफ्तर में कार्यरत थे|  बेफिक्र बच्चे का चेहराकोई पूर्व-प्रेम नहींलड़कियों के पीछे पड़नेवाला भी नहीं वल्लि ने सोचा उससे शादी करना ही सही फैसला है उसकी तरफ से इस सोच की पुष्टि करनेवाला भी कोई नहीं उसने निर्णय लिया और मुरुकन से बता दिया |

खैर,अब वह मुरुकन को देखकर यहीं रुको’ कहकर अन्दर जाती है एक बाल्टी और विदेशी कीटाणुनाशी लेकर आती है थैले को बाल्टी में रखने को कहकर मुरुकन पर हाथ के कीटाणुनाशी छिडकाती हैमुरुकन का चेहरा कीटाणुनाशी से मरनेवाले कीटों के जैसे बदल जाता है |

यहीं सो जाओ’ वल्लि ने कहा | 

उसने भी स्वीकृति के रूप में म् ‘ कहा |

अन्दर घुसकर आगे के कमरे में ही लेट गया | ‘एसी वाले’ दूसरे कमरे में वल्लि सोने लगी |  

वल्लि दूसरी स्त्रियों की तरह नहीं उसका आत्म-बोध और सपने औसत से ऊपर थे जो मुरुकन को  अच्छा लगा एक-दूसरे को समझने और शादी करने का फैसला करने के बाद मार्गशीष महीने के एक रात को मुरुकन ने पहली बार इसी घर में प्रवेश किया था दुर्लभ कलाकृतियोंकलिहारी फूल के हल्के रंग की दीवारों और अत्यावश्यक चीजों के अलावा उस घर में केवल वही अतिरिक्त रूप में था|

दोनों बोलते रहेबोलते रहेसुबह पक्षियों के घोंसले से निकलने तक बोलते रहे 

"क्या खाने के लिए कुछ ऑर्डर करूँ?" उसने पूछा |

"वह सब नहीं चाहिए क्या हम एक कॉफी लें? "आर्डर न देनामैं खुद बना देता हूँ” कहते हुए उसने रसोई घर में प्रवेश किया |

यह आश्चर्यजनक और चौंकाने वाला था | इतनी बड़ी रसोई में बर्तन नहींपीने के लिए आरओ का पानीफलों को खराब होने से बचाने के लिए फ्रिड्ज के सिवा और कोई खास चीज़ नहीं |

"अरे ! यह क्यातुम्हारी रसोई में कुछ भी नहीं है?”

किचन न होना ही मेरा सपना है। क्या तुम जानते हो कि प्रत्येक परिवार पकाने की तैयारी करने और पकाने में कितना समय व्यतीत करता हैपिछली कई पीढ़ियों से खाना बनाने का काम महिलाएँ ही करती आ रही हैं महिलाओं को पुरुष और उसके परिवार के लिए रसोई बनाना है महिलाओं के लिए मृत्यु तक रसोई घर ही एकमात्र आश्रय है खैरज्ञान बढ़ता गया और समाज में महिलाओं की स्थिति सुधरने लगी लेकिन इसके बाद यह परिस्थिति बदली क्या ?  नहीं .. क्यों?  आज भी महिलाओं के लिए अलग से पत्रिकाएँ चलानेवाले भी  मुफ्त लिंक के रूप में पाक विधि ही तो देते हैंसामाजिक गतिशीलता में यह एक कानून बन गया कि महिला हो तो उसे खाना बनाना चाहिए। बस इतना ही..!"

अरे ! दोपहर दफ्तर में खा लोगी फिर सुबह और रात के लिए?

सुबह जूस और शाम को कुछ न कुछ मंगवा लेती हूँ बीच-बीच में खाने की जगह कोई फल…”

उफ़ ! अगर मैं कल यहाँ आ जाऊँतो क्या मेरी भी यही स्थिति होगी ?”

"जरूरी नहीं! लेकिनतुम भी इसका पालन करो तो अच्छा होगा साथ ही पुरुषों के खाना बनाने से भी मैं असहमत हूँ भले ही तुम दस मिनट खाने के लिए एक घंटा खाना पकाने में लगाते क्या तुम्हीं सोचो कि कैसे उत्पादक ढंग से उस समय का उपयोग कर सकते हो एक हजार परिवार एक घंटा लगाकर एक बार का खाना पकाते हैं यदि उसी खाने को सामूहिक रूप से पकाया जाए तो एक हजार परिवारों का एक घंटा अर्थात् एक हजार घंटे की बचत हो जाती न ?”

शादी होते ही वे मधुमास मनाने महाद्वीप पार कर गए एक महीना गुज़र गयासामान्य जीवन भी फला-फूला नवविवाहित होने के कारण वह पत्नी की बातों से बंधा हुआ था खाना ऑर्डर करके ही खा रहे थे कुछ महीनों के अन्दर माँ के द्वारा फसल काटकर भेजा माप्पिल्लाई चम्पा’ चावल का बोरा 18वीं मंजिल पर पहुँच गया था | 'इसे पकाना नहीं ! बर्बाद भी नहीं करनाअत: इसे वापस भेज दो न,' वल्लि ने कहा मुरुकन अपनी माँ की मेहनत को  – अपने खेत के चावल को - वापस करना नहीं चाहता था जो चीज बेकार है उसे घर में रखना नहीं चाहती वल्लि संघर्ष शुरू हुआबढ़ता गयाविवाह विच्छेद का ही रास्ता खोल दिया विवाह विच्छेद से पहले ही दिल टूट गया वकील नोटिस आने के पहले ही मुरुकन घर से निकल गया और अपने पुराने आवास पर चला गया |

अरे ! उठो न कब तक सोओगे ?” 

"क्या?" पूछने के जैसे मुरुकन की दोनों भौहें आकाश की ओर उठी हुई थीं |

भूख नहीं लगी क्यासमय देखो|”

वह उसके लिए ब्रेड और जैम ले आई सूरज की रोशनी फ़ैली हुई थी बालकनी से नीचे देखने पर पेड़ और इमारतें ही थीं मानव या यातायात का नामो निशान नहीं सोचा कि बसें नहीं चलती और यात्रा नहीं कर सकता जिस घर में रहने का अधिकार नहीं हैउस घर में न रहना है और कैसे भी हो हाथ मुँह धोकर गाँव के लिए निकल जाना है |

वल्लि मुरुकन के इस सवाल की प्रतीक्षा में थी कि “‘क्या तुमने खाना खा लिया" 

कोरोना के चलतेवर्क फ्रम होम की घोषणा के बाद वल्लि एकदम बदल गयी है जो उड़ती रहती हैउसके लिए यह घोंसला ही अंतरिक्ष है यही उसके लिए सजा भी है लॉकडाउन के कारण खाना बनाने कोई भी नहीं मिलाऔर वायरस के संक्रमण के कारण किसी पर भरोसा करके खाना खरीदना भी असंभव हो गया 

वल्लि के कमजोर पतले शरीर और फीका चेहरा देखकर मुरुकन ने केवल तुम” कहा आकाश की दीवार तोड़ पानी बरसाकर फसल उगानेवाले काले बादल की तरह वल्लि रोने लगी उसे छूने में भी संकोच था मुरुकन को | “अभी आया” कहते हुए वह पानी लेने किचन में घुसा घुसते ही उसे झटका सा लगा साथ ही आश्चर्य भी हुआ नए बर्तन उपस्थित थे बिजली का चूल्हा भी था पर सभी अव्यवस्थित थे पकाने के लिए दाने और दालें थीं। फ्रिड्ज सब्जियों से भरा था एक तरफ चावल का बोरा मुँह पर कोई भाव प्रकट किए बिना उसने पानी लाकर दिया |

निकलता हूँ  वह बिदा लेने लगा |

खाना पकाके निकलोगे? “

रोयागले लगायाखाना पकायाखायाखिलाया |   

जिसने ''निकलता हूँ '' कहकर निकला वही  एक मंडल अर्थात् अड़तालीस दिनों तक वहीं रुका रहा माँ ने व्हाट्सएप कॉल पर नानी की पाकविधि’ से खाना बनाना सिखाया भोजन बुनियादी आवश्यकता बन गयीरसोई घर के ही शरण में रहना अनावश्यक हो गया चावल का बोरा भी खाली हुआ अड़तालीस दिन पूरे हो गए कर्फ्यू में भी ढील दी गई वल्लि का मन खुशी से भर गया और उसका वजन बढ़ गया वे दो से अब तीन हो गए कौन जानेशायद चार भी हो सकते हैं माँ को खुशी हो गयीहोने वाली माँ को भी |

दरवाजे पर आए वकील नोटिस को दोनों ने मिलकर फाड़ डाला जिस रसोई घर की रसोई ने मानसिक टूट का बीज बोयावही प्यार और आत्मीयता को बढ़ाया यह वास्तविकता ही विश्वास बन गया |

उस दिन के अखबार की सुर्खी: देश से पूरी तरह दूर हुआ कोरोना संक्रमणसोशल डिस्टेंसिंग की अब जरूरत नहीं |“

दिनांक 09.12.2020 को कुमुदम पत्रिका में प्रकाशित

नोट: कुमुदम तमिल साप्ताहिक पत्रिका और कुमुदम फाउंडेशन के संयुक्त रूप से आयोजित संघ साहित्यिक लघु कथा प्रतियोगिता में तीसरा पुरस्कार प्राप्त |




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